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मंगलवार, 11 अगस्त 2020

आमजन का हित सर्वोपरि न रखने पर ही समाज बिखरते हैं, यही धीरे-धीरे इजराइल व अमेरिका में हो रहा है, इसे रोकना ही हमारी पीढ़ी का सबसे जरूरी काम है

जब मैंने पहली बार बेरूत में भयानक धमाके की खबर और उसे लेकर चल रही अटकलें सुनीं तो मुझे 40 साल पहले की एक डिनर पार्टी याद आई, जो अमेरिकन यूनिवर्सिटी ऑफ बेरूत के प्रेसीडेंट मैलकम केर के घर पर हुई थी। इस दौरान किसी ने बेरूत में हुई असामान्य ओलावृष्टि का जिक्र किया।

हर कोई इसके पीछे का कारण बताने लगा कि तभी मैलकम ने चुटकी ली, ‘क्या आपको लगता है, यह सीरिया ने किया?’ मैलकम दरअसल हर चीज में साजिश देखने वाली लेबनानी प्रवृत्ति का मजाक उड़ा रहे थे, खासतौर पर सीरिया को लेकर, इसलिए हम सभी इस पर हंसे।

लेकिन इस बात में वे लेबनानी समाज के बारे में गहरी बात भी कह रहे थे, जो आज अमेरिका पर भी लागू होती है। यह बात कि लेबनान में हर चीज, यहां तक कि मौसम भी राजनीतिक हो गया है। लेबनानी समाज की साम्प्रदायवादी प्रकृति के कारण, जहां सभी शक्तियां संवैधानिक रूप से अलग-अलग ईसाई और मुस्लिम पंथों के बीच सावधानीपूर्वक बांटी गईं, वहां हर चीज राजनीतिक ही होगी।

यह ऐसा तंत्र था, जो बेहद विविध समाज में स्थिरता लाया था, लेकिन इसकी कीमत थी जवाबदेही की कमी, भ्रष्टाचार और अविश्वास। इसीलिए हाल ही में हुए धमाके के बाद कई लेबनानियों ने यह नहीं पूछा कि क्या हुआ, बल्कि यह पूछा कि यह किसने किया और किस फायदे के लिए?

अमेरिका दो मामलों से लेबनान और अन्य मध्यपूर्वी देशों जैसा हो रहा है। पहला, हमारे राजनीतिक मतभेद इतने गहरे होते जा रहे हैं कि हमारी दो पार्टियां अब सत्ता की दौड़ में दो धार्मिक पंथों की तरह लगती हैं। वे अपने पंथों को ‘शिया, सुन्नी, मैरोनाइट्स’ या ‘इजरायली और फिलिस्तीनी’ कहते हैं। हम अमेरिकियों के पंथ ‘डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन्स’ हो गए हैं। लेकिन हमारे पंथ अब दो विरोधी कबीलों जैसा व्यवहार कर रहे हैं, जो मानते हैं कि या तो राज करो या मर जाओ।

और दूसरा, जैसा कि मध्यपूर्व में होता है, अमेरिका में भी हर बात पर राजनीति होती है। यहां तक कि जलवायु, ऊर्जा और महामारी में मास्क तक पर। वास्तव में हम अमेरिकी इतने ज्यादा मध्यपूर्वी देशों जैसे हो रहे हैं कि जहां लेबनानी धमाके को दुर्घटना बता रहे हैं, हमारे राष्ट्रपति ट्रम्प इसे साजिश बता रहे हैं।

लेकिन जब हर चीज राजनीति हो जाती है, तो एक समाज और लोकतंत्र अंतत: मर जाता है। जब हर चीज राजनीति हो जाती है तो इसका मतलब होता है कि हर चीज सत्ता के बारे में है। कोई केंद्र नहीं है, सिर्फ दो पक्ष हैं। कोई सत्य नहीं है, सिर्फ उसके संस्करण हैं। कोई तथ्य नहीं है, सिर्फ मर्जियों की होड़ है।

ट्रम्प या इजराइल में नेतन्याहू, ब्राजील में बोलसोनारो और रूस में पुतिन जैसे अनुदार लोकवादी नेता जानबूझकर तथ्यों और आमजन के हित को दबाने की कोशिश करते हैं। उनका अपने लोगों को संदेश है, ‘अदालतों, स्वतंत्र लोकसेवकों पर भरोसा मत करो। सिर्फ मुझ पर, मेरे शब्दों, मेरे फैसलों पर विश्वास करो। बाहर खतरनाक जंगल है। मेरे आलोचक हत्यारे हैं और केवल मैं हमारे कबीले को उनसे बचा सकता हूं।’

ट्रम्प कोरोना के प्रबंधन में बुरी तरह असफल रहे हैं क्योंकि वे विज्ञान और तथ्यों को नहीं मानते। हाल ही में ट्रम्प ने रिपब्लिकन समर्थकों से क्लीवलैंड में कहा कि अगर बिडेन जीते तो वे ‘बाइबिल को, ईश्वर को नुकसान पहुंचाएंगे। वे ईश्वर के, बंदूकों के और हमारी जैसी ऊर्जा के विरुद्ध हैं।’

हमारी जैसी ऊर्जा? जी हां, अब एक रिपब्लिकन ऊर्जा है यानी तेल, गैस और कोयला। और एक डेमोक्रेटिक ऊर्जा है यानी हवा, सोलर और हायड्रो। और अगर आप तेल, गैस और कोयला में विश्वास करते हैं तो आपको फेस मास्क का भी विरोध करना होगा। अगर आप सोलर, हवा और हायड्रो में भरोसा करते हैं तो आपको मास्क का समर्थक माना जाएगा। इसी तरह की सोच की अति ने लेबनान, सीरिया, इराक, लीबिया और यमन को बर्बाद किया।

फिर वे कौन-से नेता हैं, जिनसे असहमत होने पर भी हम उनका सम्मान करते हैं? ये वे नेता हैं जो आमजन के हित में विश्वास रखते हैं। बेशक वे अपनी पार्टियों के लिए बहुत कुछ करते हैं, उन्हें राजनीति से परहेज नहीं है। लेकिन वे जानते हैं कि कहां शुरुआत करनी है और कहां रुकना है। वे अपनी सत्ता के लिए संविधान को नष्ट नहीं करेंगे, युद्ध शुरू नहीं करेंगे। मध्यपूर्व में ऐसे लोग दुर्लभ हैं या आमतौर पर मार दिए जाते हैं।

यही कारण है कि हम अब भी अपनी सेना का सम्मान करते हैं, जो हमारे आमजन की रक्षा करती है और हमें बुरा लगता है जब ट्रम्प उन्हें ‘राजनीति’ में घसीटते हैं। अल गोरे के आत्मसम्मान को याद कीजिए, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जॉर्ज डब्ल्यू. बुश के लिए 2000 का चुनाव छोड़ दिया। गोरे ने सार्वजनिक हित को पहले रखा। उनकी जगह ट्रम्प होते तो अमेरिका को तोड़ देते।

यकीन मानिए, अगर वे नवंबर में हार गए तो वे आमजन का हित पहले नहीं रखेंगे। आमजन का हित सर्वोपरि न रखने पर ही समाज बिखरते हैं। यही लेबनान, सीरिया, यमन, लीबिया और इराक में हुआ। और यही धीरे-धीरे इजराइल व अमेरिका में हो रहा है। इस चलन को रोकना ही हमारी पीढ़ी का सबसे जरूरी काम है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



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तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में नियमित स्तंभकार


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